Thursday 22 December 2016

completeness

Smile indicates the Sweetness of heart and Silence indicates the Maturity of mind.
Having both indicates completeness of being human.

Monday 26 September 2016

संतो की वाणी

संतो की वाणी
कोई भी "आँख "से "काजल "चुरा नहीं सकता
विधि ने जो है" लिखा "वो "मिटा "नहीं सकता
ये "जिंदगी 'का "दीया "भी 'अजीब" "दीपक" है
जो "बुझ" गया तो कोई" फिर "जला" नहीं सकता
"बुराई" चीज ही ऐसी है "सब" में होती है
कोई "गुणो "को किसी के" चुरा "नहीं सकता
"सतगुरु" तो सभी के" दिलो" में "निवास" करते है
कोई किसी को "मगर "दिल "दिखा नहीं सकता
"सतगुरु" के "सिवा" भव "से "पार" कोई भी "लगा "नहीं सकता "l

अपनों से हमेशा जुड़े रहे

*आज एक नई सीख़ मिली*
जब अँगूर खरीदने बाजार गया ।
पूछा *"क्या भाव है?*
बोला : *"80 रूपये किलो ।"*
पास ही कुछ अलग-अलग टूटे हुए अंगूरों के दाने पडे थे ।
मैंने पूछा: *"क्या भाव है" इनका ?"*
वो बोला : *"30 रूपये किलो"*
मैंने पूछा : "इतना कम दाम क्यों..?
वो बोला : "साहब, हैं तो ये भी बहुत बढीया..!!
लेकिन ... *अपने गुच्छे से टूट गए हैं ।"*
मैं समझ गया कि ... *संगठन...समाज* और  *परिवार* से अलग होने पर हमारी कीमत......आधे से भी कम रह जाती है।

कृपया *अपनों* से हमेशा जुड़े रहे।

Sunday 25 September 2016

सात चीजें हमारा जीवन बर्बाद कर देती है:-

सात चीजें हमारा जीवन बर्बाद कर देती है:-
      बिना मेहनत के धन,
              बिना विवेक के सुख,
                     बिना सिध्दांतों के राजनीति,
       बिना चरित्र के ज्ञान,
               बिना नैतिकता के व्यापार,
                     बिना मानवता के विज्ञान,
                             बिना त्याग के पूजा

Represent yourself

"Always try to represent yourself 'happy',
Because ,
Initially, it becomes your 'look',
Gradually, it becomes your 'habit' &
finally, it becomes your 'personality'! "

क्षमा

भीतर क्षमा हो तो क्षमा निकलेगी भीतर क्रोध हो तो क्रोध निकलेगा हमारे अंदर जो भी संस्कार हैं वही बाहर निकलेंगे
इसलिए जब भी कुछ आपके बाहर निकले तो दूसरे को दोषी मत ठहराइये वह आपकी ही संपदा है जिसको आपने अपने भीतर छिपा रखा था...

Saturday 24 September 2016

कर्मों का फल

ध्यान से पढे़ , अनजाने मे पाप कैसे होता है

कर्मों का फल तो झेलना पड़ेगा

...
एक दृष्टान्त:-

भीष्म पितामह रणभूमि में
शरशैया पर पड़े थे।
हल्का सा भी हिलते तो शरीर में घुसे बाण भारी वेदना के साथ रक्त की पिचकारी सी छोड़ देते।

ऐसी दशा में उनसे मिलने सभी आ जा रहे थे। श्री कृष्ण भी दर्शनार्थ आये। उनको देखकर भीष्म जोर से हँसे और कहा.... आइये जगन्नाथ।.. आप तो सर्व ज्ञाता हैं। सब जानते हैं, बताइए मैंने ऐसा क्या पाप किया था जिसका दंड इतना भयावह मिला?

कृष्ण: पितामह! आपके पास वह शक्ति है, जिससे आप अपने पूर्व जन्म देख सकते हैं। आप स्वयं ही देख लेते।

भीष्म: देवकी नंदन! मैं यहाँ अकेला पड़ा और कर ही क्या रहा हूँ? मैंने सब देख लिया ...अभी तक 100 जन्म देख चुका हूँ। मैंने उन 100 जन्मो में एक भी कर्म ऐसा नहीं किया जिसका परिणाम ये हो कि मेरा पूरा शरीर बिंधा पड़ा है, हर आने वाला क्षण ...और पीड़ा लेकर आता है।

कृष्ण: पितामह ! आप एक भव और पीछे जाएँ, आपको उत्तर मिल जायेगा।

भीष्म ने ध्यान लगाया और देखा कि 101 भव पूर्व वो एक नगर के राजा थे। ...एक मार्ग से अपनी सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ कहीं जा रहे थे।
एक सैनिक दौड़ता हुआ आया और बोला "राजन! मार्ग में एक सर्प पड़ा है। यदि हमारी टुकड़ी उसके ऊपर से गुजरी तो वह मर जायेगा।"

भीष्म ने कहा " एक काम करो। उसे किसी लकड़ी में लपेट कर झाड़ियों में फेंक दो।"

सैनिक ने वैसा ही किया।...उस सांप को एक लकड़ी में लपेटकर झाड़ियों में फेंक दिया।

दुर्भाग्य से झाडी कंटीली थी। सांप उनमें फंस गया। जितना प्रयास उनसे निकलने का करता और अधिक फंस जाता।... कांटे उसकी देह में गड गए। खून रिसने लगा। धीरे धीरे वह मृत्यु के मुंह में जाने लगा।... 5-6 दिन की तड़प के बाद उसके प्राण निकल पाए।
....

भीष्म: हे त्रिलोकी नाथ। आप जानते हैं कि मैंने जानबूझ कर ऐसा नहीं किया। अपितु मेरा उद्देश्य उस सर्प की रक्षा था। तब ये परिणाम क्यों?

कृष्ण: तात श्री! हम जान बूझ कर क्रिया करें या अनजाने में ...किन्तु क्रिया तो हुई न। उसके प्राण तो गए ना।... ये विधि का विधान है कि जो क्रिया हम करते हैं उसका फल भोगना ही पड़ता है।.... आपका पुण्य इतना प्रबल था कि 101 भव उस पाप फल को उदित होने में लग गए। किन्तु अंततः वह हुआ।....

जिस जीव को लोग जानबूझ कर मार रहे हैं... उसने जितनी पीड़ा सहन की.. वह उस जीव (आत्मा) को इसी जन्म अथवा अन्य किसी जन्म में अवश्य भोगनी होगी।

अतः हर दैनिक क्रिया सावधानी पूर्वक करें।.

कर्मों का फल तो भोगना  पड़ेगा

कंधे पर


मेरे कंधे पर बैठा मेरा बेटा जब मेरे कंधे पे खड़ा हो गया
मुझी से कहने लगा ';देखो पापा में तुमसे बड़ा हो गया';
मैंने कहा ';बेटा इस खूबसूरत ग़लतफहमी में भले ही जकडे रहना मगर मेरा हाथ पकडे रखना';
';जिस दिन यह हाथ छूट जाएगा
बेटा तेरा रंगीन सपना भी टूट जाएगा';
';दुनिया वास्तव में उतनी हसीन नही है
देख तेरे पांव तले अभी जमीं नही है';
';में तो बाप हूँ बेटा
बहुत खुश हो जाऊंगा
जिस दिन तू वास्तव में मुझसे बड़ा हो जाएगा
मगर बेटे कंधे पे नही ...
जब तू जमीन पे खड़ा हो जाएगा!!
ये बाप तुझे अपना सब कुछ दे जाएगा ! और
तेरे कंधे पर दुनिया से चला जाएगा !!.

स्नेहिल-प्रभात...!

स्नेहिल-प्रभात...!!!

जीत मिले जीवन में, हर बाधा जाए हार;
सफलता सजे थाल पर, बने ख़ुशियाँ गले का हार;
दुःख सभी के दूर होवें, मिट जाए कष्ट-क्लेश;
नव-प्रगति नव-उल्लास का, नित होवे श्री गणेश।

कठिनाईयां

अगर इंसान शिक्षा से पहले संस्कृति ,,
व्यापार से पहले व्यवहार,,,
और भगवान से पहले माता-पिता,,
को पहचान ले तो,,
ज़िंदगी में कभी कोई ,,,
कठिनाईयां नहीं आएगी,,||

 

स्वर्ग के लिए कोई टिफिन सेवा...

श्राद्ध

☀ स्वर्ग के लिए कोई टिफिन
सेवा...
शुरू नही हुई है ।

⭐ माता-पिता को जीते-जी ही...
सारे सुख देना वास्तविक श्राद्ध है

समय

*"समय बहाकर* ले जाता है
            *नाम और निशान*...
कोई *हम* में रह जाता है
            कोई *अहम* में रह जाता है..

बोल मीठे ना हों तो *हिचकियाँ* भी नहीं आती....
*घर बड़ा हो या छोटा*,
अगर *मिठास* ना होंतो *इंसान* क्या,
*चींटियां* भी नहीं आती"...! 

तोड़ना

रिश्ते चाहे कितने ही बुरे हो जायें
लेकिन उन्हें तोड़ना मत.

क्योंकि
पानी चाहे कितना भी गंदा हो
प्यास भले ही ना बुझाए
पर आग तो बुझा ही सकता है.

नेत्र दान

जिनकी नजरों में हम अच्छे नही हैं
.
.
.
_वो अपना नेत्र दान कर सकते हैं_

Thursday 15 September 2016

प्रबंधन

             प्रबंधन का मतलब किसी भी कार्य को ठीक से करना है। और नेतृत्व का मतलब सही कार्य का चयन करना है।
   एक अच्छे नेतृत्व में दूरदृष्टि अथवा सोच को हकीकत में बदलने की क्षमता होती है।।
       "स्वयं में नेतृत्व क्षमता का विकास करे "

     

शरीर को चंगा रखो

"शरीर को चंगा रखो
दिमाग़ को ठंडा रखो
जेब को गरम रखो
आँखों में शरम रखो
जुबान को नरम रखो
दिल में रहम रखो
क्रोध पर लगाम रखो
व्यवहार को साफ़ रखो
होटो पर मुस्कुराहट रखो
फिर स्वर्ग मे जाने की
क्या जरूरत, यहीं स्वर्ग है
स्वस्थ रहो......व्यस्त रहो.
...

Monday 12 September 2016

डाली से टूटा फूल

डाली से टूटा फूल फिर से
लग नहीं सकता है
         मगर
डाली मजबूत हो तो उस पर
      नया फूल खिल सकता है
उसी तरह ज़िन्दगी में
             खोये पल को ला नहीं सकते
      मगर
हौसलें व विश्वास से
          आने वाले हर पल को
               खुबसूरत बना सकते हैं।
 

Sunday 11 September 2016

जीवन के तीन मंत

*जीवन के तीन मंत्र

        *आनंद में - वचन मत दीजिये* 
        *क्रोध में - उत्तर मत दीजिये* 
        *दुःख में - निर्णय मत लीजिये*

        *जीवन मंत्र* 

        *१)* धीरे बोलिये  शांति मिलेगी
        *२)* अहम छोड़िये  बड़े बनेंगे
        *३)* भक्ति कीजिए  मुक्ति मिलेगी
        *४)* विचार कीजिए  ज्ञान मिलेगा
        *५)* सेवा कीजिए  शक्ति मिलेगी
        *६)* सहन कीजिए  देवत्व मिलेगा
        *७)* संतोषी बनिए  सुख मिलेगा

        " *इतना छोटा कद रखिए कि* सभी आपके साथ बैठ सकें। *और इतना बड़ा मन रखिए कि* जब आप खड़े हो जाऐं, *तो कोई बैठा न रह* सके।"

           *शानदार बात*

        *झाड़ू जब तक एक सूत्र में बँधी* होती है, तब तक वह *"कचरा"* साफ करती है।

        *लेकिन वही झाड़ू जब बिखर* जाती है, तो खुद *"कचरा"* हो जाती है।

        *इस लिये, हमेशा संगठन से बंधे रहें, बिखर कर कचरा न बनें।*

              *Զเधे Զเधे*

सुभाषित

सुभाषित

मूर्खो न हि ददाति अर्थ
नरो दारिद्रयशङ्कया ।
प्राज्ञाः तु वितरति अर्थ
नरो दारिद्रयशङ्कया ॥
- भोजप्रबंध

A fool does not do charity for the fear of himself becoming poor(by losing the wealth). A wise man does charity exactly for the same fear that he may become poor if he did not do charity now.
-Bhojaprabandha

एक मूर्ख व्यक्ति इस डर से परोपकार , दान नहीं करता क्योंकि उसे लगता है कि धन खो जाने से वह गरीब हो जाऐगा ।एक बुद्धिमान व्यक्ति ठीक इस डर से दान , परोपकार करता है कि अगर उसने अभी दान किया तो वह गरीब हो सकता है।
---भोजप्रबन्ध

Wednesday 7 September 2016

रिश्ते और बर्फ के गोले

रिश्ते और बर्फ के गोले
एक समान ही होते हैं...
जिसे बनाना तो आसान होता है
लेकिन बनाए रखना
बहुत मुश्किल होता हैं।

दोनो को बचाए रखने का
बस एक ही तरीका है...
...शीतलता बनाए रखिए...!!

Tuesday 6 September 2016

मुस्कान


ऐ सूर्य देव मेरे अपनो को
         यह पैगाम देना;
खुशियों का दिन
         हँसी की शाम देना;
जब कोई पढे प्यार से
         मेरे इस पैगाम को;
तो उन को चेहरे पर
         प्यारी सी मुस्कान देना।
।सुप्रभात।

Friday 2 September 2016

जमीर

लोग कहते है कि आदमी को अमीर होना चाहिए ....

और मैं कहता हूँ कि आदमी का जमीर होना चाहिए ....

 

आवश्यकता से अधिक संचय

किसी ने महावीर से पुछा..
"ज़हर क्या है"..?

महावीर ने बहुत सुन्दर जबाब दिया...
"हर वो चीज़ जो ज़िन्दगी में
आवश्यकता से अधिक होती है
वही ज़हर है"..
फ़िर चाहे वो ताक़त हो,
धन हो, भूख हो, लालच हो,
अभिमान हो, आलस हो,
महत्वकाँक्षा हो, प्रेम हो या घृणा..
आवश्यकता से अधिक संचय "ज़हर" ही है..

चेहरा

*इंसान अपना वो चेहरा तो*
     *खूब सजाता है जिस पर❣*

     *लोगों की नज़र होती है*

    *मगर आत्मा को सजाने की*
    *कोशिश कोई नही करता*
*जिस पर परमात्मा की नजर होती है*

कड़वा सच

कड़वा सच है जरा धयान दें

एक नौजवान ने अपने दादा से पूछा कि दादा जी आप लोग पहले कैसे रहते थे ?
न कोई टेक्नोलॉजी , न जहाज, न कंप्यूटर, न गाड़ियां, न मोबाइल ।

दादा जी ने जवाब दिया कि जैसे तुम लोग आजकल रहते हो ।
न पूजा, न पाठ, न दीन, न धरम, न लज्जा, न शरम ।

     

शुन्य

ऐ मेरे प्रभु,
    तुझको कुछ बनाना ही है तो
     मुझे शुन्य बना दे, ताकि
    जिससे भी जुड जाऊ,
     वो दस गुना हो जाये.
   
     .....

रिश्ता और भरोसा

रिश्ता और भरोसा दोनो ही दोस्त हे,
रिश्ता रखो या ना रखो,
किंतु....
भरोसा जरूर रखना...
क्युंकी जंहा भरोसा होता हे वंहा रिस्ते अपने आप बन जाते है.....

बाजार

"दिमाग" से बनाये हुए "रिश्ते" बाजार तक चलते है,,,!
"और "दिल" से बनाये "रिश्ते" आखरी सांस तक चलते है,,,!

Sunday 28 August 2016

वृक्ष के नीचे पानी

*वृक्ष के नीचे पानी डालने से सबसे ऊंचे पत्ते पर भी पानी पहुँच जाता है ,*
*उसी प्रकार प्रेम पूर्वक किये गए कर्म परमात्मा तक पहुंच जाते हैं*।
*सेवा सभी की करिये मगर,आशा किसी से भी ना रखिये*
*क्योंकि सेवा का सही मूल्य भगवान् ही दे सकते हैं इंसान नहीl*
�jay shri krishna

Saturday 27 August 2016

तेरा मेरा

तेरा मेरा करते एक दिन चले जाना है,
       जो भी कमाया यही रह जाना है !
कर ले कुछ अच्छे कर्म,
       साथ यही तेरे जाना है !
रोने से तो आंसू भी पराये हो जाते हैं,
       लेकिन मुस्कुराने से...
पराये भी अपने हो जाते हैं !
       मुझे वो रिश्ते पसंद है,
जिनमें  " मैं " नहीं  " हम " हो !!
इंसानियत दिल में होती है, हैसियत में नही,
उपरवाला कर्म देखता है, वसीयत नही..

  
           सुभ प्रभात

Wednesday 24 August 2016

माखन चोर

दुर्योधन ने श्री कृष्ण की पूरी नारायणी सेना मांग ली थी।
और अर्जुन ने केवल श्री कृष्ण को मांगा था।
उस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन की चुटकी (मजाक) लेते हुए
कहा:
"हार निश्चित हैं तेरी, हर दम रहेगा उदास ।
माखन दुर्योधन ले गया, केवल छाछ बची तेरे पास ।"
अर्जुन ने कहा :- हे प्रभु
"जीत निश्चित हैं मेरी, दास हो नहीं सकता उदास ।
माखन लेकर क्या करूँ, जब माखन चोर हैं मेरे पास...!!!!

Sunday 21 August 2016

पसंद और प्रेम

पसंद और प्रेम में दोनों में क्या अंतर है ?
इसका सबसे सुन्दर जवाब गौतम बुद्ध ने दिया है :- अगर तुम 1 फूल को पसन्द करते हो तो तुम उसे तोड़कर रखना चाहोगे।
लेकिन अगर उस फूल से प्रेम करते हो तो तोड़ने के बजाय तुम रोज उसमें पानी डालोगे ताकि फूल मुरझाने न पाए।
जिसने भी  इस को समझ लिया समझो उसने पूरी जिंदगी को ही समझ लिया l
�jay shri krishna

Tuesday 16 August 2016

समाधान

पृथ्वी पर कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसको कोई समस्या न हो और पृथ्वी पर कोई समस्या ऐसी नहीं है
जिसका कोई समाधान न हो समस्या का समाधान इस बात पर निर्भर करेगा कि हमारा सलाहकार कौन है ये बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि
दुर्योधन शकुनि से सलाह लेता था और अर्जुन श्रीकृष्ण से ...

Thursday 11 August 2016

अवगुण

गुण मिलने पर शादी होती है..
और
अवगुण मिलने पर दोस्ती !

'अहंकार' का 'ज्ञान'

ये इंसान भी परमात्मा ने  कैसी चीज़ बनाई है.....जिसे अपने 'ज्ञान' का
'अहंकार' तो बहुत है... लेकिन
अपने 'अहंकार' का 'ज्ञान' बिलकुल भी नहीं है....

Monday 8 August 2016

परखता

"परखता" तो वक्त है
      कभी हालात के रूप में
      कभी मजबूरीयों के रूप में,
         भाग्य तो बस आपकी
         काबिलियत देखता है!
        जीवन में कभी किसी से
         अपनी तुलना मत करो
         आप जैसे हैं, सर्वश्रेष्ठ हैं,
    ईश्वर की हर रचना अपने आप में
          सर्वोत्तम है, अदभुत है।
"सुप्रभात"आपका दिन मंगलमय हो।

मेहनत लगती है

मेहनत लगती है,
सपनो को सच बनाने मे
हौसला लगता है,
बुलन्दियों को पाने मे
बरसो लगते है
जिन्दगी बनाने मे,
ओर
जिन्दगी फिर भी कम पडती है,
रिश्ते निभाने मे।
   

Sunday 7 August 2016

दूध

दूध उपयोगी है किंतु एक ही दिन के लिए, फिर वो बिगड जाता है.  दूध में एक बूंद छाछ डालने से वह दही बन जाता है, जो केवल एक और दिन टिकता है.  दही का मंथन करने पर मक्खन बन जाता है, यह एक और दिन टिकता है. मक्खन को उबालकर घी बनता है. घी कभी बिगडता नहीं.
.
एक दिन में बिगडने वाले दूध में न बिगड़ने वाला घी छिपा है. 
.
इसी तरह आपका मन अथाह शक्तियों से भरा है. उसमे कुछ सकारात्मक विचार की बिलोनी डालो, अपने को मथो अर्थात चिंतन करो और अपने जीवन को तपाओ.
.
आप कभी न ख़राब होने वाले शुद्ध आत्मा बन जाओगे....

गुणयुक्त

गुणवदगुणवद्वा कुर्वता कार्यजातं
परिणतिरवधार्या यत्नतः पण्डितेन।
अतिरभसकृतानां कर्मणामाविपत्ते-
र्भवती हृदयदाही शल्यतुल्यो विपाकः।।
गुणयुक्त या दोषयुक्त कार्यों को करने से पूर्व विद्वान पुरुष को उसका परिणाम भली- भाँति सोच लेना चाहिए, क्योंकि अत्यंत शीघ्रता में किये गए कर्मों का परिणाम काँटे या कील के समान मरणपर्यन्त हृदय को संताप देता है।

षड्यंत्र

एक समय था जब  मंत्र  काम करते थे उसके बाद एक समय आया जिसमें  तंत्र काम करते थे फिर समय आया जिसमे यंत्र काम करते थे और आज के समय में कितने दुःख की बात है.सिर्फ षड्यंत्र काम करते है जब तक सत्य घर से बाहर निकलता है तब तक झूठ   आधी दुनिया घूम लेता हैl

मुनि श्री 108 तरुण सागर जी महाराज के कड़वे प्रवचन

राष्ट्रसंत मुनि श्री 108 तरुण सागर जी महाराज के कड़वे प्रवचन

"भले ही लड़ लेना - झगड़ लेना .
पिट जाना - पीट देना.
मगर बोल - चाल बंद मत करना ।
क्योकि बोल - चाल के बंद होते ही
सुलह  के सारे दरबाजे बंद हो जाते है।
गुस्सा बुरा नहीं है ।
गुस्से के बाद आदमी जो बैर पाल लेता है. वह बुरा है।
गुस्सा तो बच्चे भी करते है. मगर बच्चे बैर नहीं पालते ।
वे इधर लड़ते -झगड़ते है और अगले ही क्षण फिर एक हो जाते है ।
कितना अच्छा रहे की हर कोई बच्चा ही रहे ।
jay shri krishna

Tuesday 2 August 2016

झूठ

झूठ में आकर्षण हो सकता है पर स्थिरता केवल सत्य मे हैकुछ ऐसे हो रहा है रिश्तों का व्यापार जिससे जिसका मतलब जितना उससे उतना प्यार खामोशी से भी नेक काम होते है मैंने देखा है पेड़ों को छाँव देते हुए।

Speech

Speech Is An Important Part Of Our Personality..
Because
Looks And Beauty Can Only Gain Attraction..
But
Speech And Good Language Can Win Hearts Forever..!

परवरिश

जिन पौधो की परवरिश ,
हमेशा छांव में होती है ..
वह अक्सर कमजोर होते है ..

और जिन पौधो की परवरिश ,
धूप मे होती है ..
वह हर मौसम को झेल लेते है ..!!

Monday 25 July 2016

बिल्वपत्र_चढाने_के_108_मन्त्र

#बिल्वपत्र_चढाने_के_108_मन्त्र

त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम् ।
त्रिजन्म पापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१॥

त्रिशाखैः बिल्वपत्रैश्च अच्छिद्रैः कोमलैः शुभैः ।
तव पूजां करिष्यामि एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२॥

सर्वत्रैलोक्यकर्तारं सर्वत्रैलोक्यपालनम् ।
सर्वत्रैलोक्यहर्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३॥

नागाधिराजवलयं नागहारेण भूषितम् ।
नागकुण्डलसंयुक्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४॥

अक्षमालाधरं रुद्रं पार्वतीप्रियवल्लभम् ।
चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५॥

त्रिलोचनं दशभुजं दुर्गादेहार्धधारिणम् ।
विभूत्यभ्यर्चितं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६॥

त्रिशूलधारिणं देवं नागाभरणसुन्दरम् ।
चन्द्रशेखरमीशानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७॥

गङ्गाधराम्बिकानाथं फणिकुण्डलमण्डितम् ।
कालकालं गिरीशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८॥

शुद्धस्फटिक सङ्काशं शितिकण्ठं कृपानिधिम् ।
सर्वेश्वरं सदाशान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९॥

सच्चिदानन्दरूपं च परानन्दमयं शिवम् ।
वागीश्वरं चिदाकाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०॥

शिपिविष्टं सहस्राक्षं कैलासाचलवासिनम् ।
हिरण्यबाहुं सेनान्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥११॥

अरुणं वामनं तारं वास्तव्यं चैव वास्तवम् ।
ज्येष्टं कनिष्ठं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१२॥

हरिकेशं सनन्दीशं उच्चैर्घोषं सनातनम् ।
अघोररूपकं कुम्भं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१३॥

पूर्वजावरजं याम्यं सूक्ष्मं तस्करनायकम् ।
नीलकण्ठं जघन्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१४॥

सुराश्रयं विषहरं वर्मिणं च वरूधिनम् I
महासेनं महावीरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१५॥

कुमारं कुशलं कूप्यं वदान्यञ्च महारथम् ।
तौर्यातौर्यं च देव्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१६॥

दशकर्णं ललाटाक्षं पञ्चवक्त्रं सदाशिवम् ।
अशेषपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१७॥

नीलकण्ठं जगद्वन्द्यं दीननाथं महेश्वरम् ।
महापापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१८॥

चूडामणीकृतविभुं वलयीकृतवासुकिम् ।
कैलासवासिनं भीमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१९॥

कर्पूरकुन्दधवलं नरकार्णवतारकम् ।
करुणामृतसिन्धुं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२०॥

महादेवं महात्मानं भुजङ्गाधिपकङ्कणम् ।
महापापहरं देवं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२१॥

भूतेशं खण्डपरशुं वामदेवं पिनाकिनम् ।
वामे शक्तिधरं श्रेष्ठं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२२॥

फालेक्षणं विरूपाक्षं श्रीकण्ठं भक्तवत्सलम् ।
नीललोहितखट्वाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥२३॥

कैलासवासिनं भीमं कठोरं त्रिपुरान्तकम् ।
वृषाङ्कं वृषभारूढं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२४॥

सामप्रियं सर्वमयं भस्मोद्धूलितविग्रहम् ।
मृत्युञ्जयं लोकनाथं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२५॥

दारिद्र्यदुःखहरणं रविचन्द्रानलेक्षणम् ।
मृगपाणिं चन्द्रमौळिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२६॥

सर्वलोकभयाकारं सर्वलोकैकसाक्षिणम् ।
निर्मलं निर्गुणाकारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२७॥

सर्वतत्त्वात्मकं साम्बं सर्वतत्त्वविदूरकम् ।
सर्वतत्त्वस्वरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥२८॥

सर्वलोकगुरुं स्थाणुं सर्वलोकवरप्रदम् ।
सर्वलोकैकनेत्रं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II२९॥

मन्मथोद्धरणं शैवं भवभर्गं परात्मकम् ।
कमलाप्रियपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३०॥

तेजोमयं महाभीमं उमेशं भस्मलेपनम् ।
भवरोगविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३१॥

स्वर्गापवर्गफलदं रघुनाथवरप्रदम् ।
नगराजसुताकान्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३२॥

मञ्जीरपादयुगलं शुभलक्षणलक्षितम् ।
फणिराजविराजं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३३॥

निरामयं निराधारं निस्सङ्गं निष्प्रपञ्चकम् ।
तेजोरूपं महारौद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३४॥

सर्वलोकैकपितरं सर्वलोकैकमातरम् ।
सर्वलोकैकनाथं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३५॥

चित्राम्बरं निराभासं वृषभेश्वरवाहनम् ।
नीलग्रीवं चतुर्वक्त्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥३६॥

रत्नकञ्चुकरत्नेशं रत्नकुण्डलमण्डितम् ।
नवरत्नकिरीटं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३७॥

दिव्यरत्नाङ्गुलीस्वर्णं कण्ठाभरणभूषितम् ।
नानारत्नमणिमयं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३८॥

रत्नाङ्गुलीयविलसत्करशाखानखप्रभम् ।
भक्तमानसगेहं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II३९॥

वामाङ्गभागविलसदम्बिकावीक्षणप्रियम् ।
पुण्डरीकनिभाक्षं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४०॥

सम्पूर्णकामदं सौख्यं भक्तेष्टफलकारणम् ।
सौभाग्यदं हितकरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४१॥

नानाशास्त्रगुणोपेतं स्फुरन्मङ्गल विग्रहम् ।
विद्याविभेदरहितं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II४२॥

अप्रमेयगुणाधारं वेदकृद्रूपविग्रहम् ।
धर्माधर्मप्रवृत्तं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II४३॥

गौरीविलाससदनं जीवजीवपितामहम् ।
कल्पान्तभैरवं शुभ्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४४॥

सुखदं सुखनाशं च दुःखदं दुःखनाशनम् ।
दुःखावतारं भद्रं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४५॥

सुखरूपं रूपनाशं सर्वधर्मफलप्रदम् ।
अतीन्द्रियं महामायं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४६॥

सर्वपक्षिमृगाकारं सर्वपक्षिमृगाधिपम् ।
सर्वपक्षिमृगाधारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II४७॥

जीवाध्यक्षं जीववन्द्यं जीवजीवनरक्षकम् ।
जीवकृज्जीवहरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥४८॥

विश्वात्मानं विश्ववन्द्यं वज्रात्मावज्रहस्तकम् ।
वज्रेशं वज्रभूषं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II४९॥

गणाधिपं गणाध्यक्षं प्रलयानलनाशकम् ।
जितेन्द्रियं वीरभद्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५०॥

त्र्यम्बकं मृडं शूरं अरिषड्वर्गनाशनम् ।
दिगम्बरं क्षोभनाशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५१॥

कुन्देन्दुशङ्खधवलं भगनेत्रभिदुज्ज्वलम् ।
कालाग्निरुद्रं सर्वज्ञं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५२॥

कम्बुग्रीवं कम्बुकण्ठं धैर्यदं धैर्यवर्धकम् ।
शार्दूलचर्मवसनं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II५३॥

जगदुत्पत्तिहेतुं च जगत्प्रलयकारणम् ।
पूर्णानन्दस्वरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५४॥

सर्गकेशं महत्तेजं पुण्यश्रवणकीर्तनम् ।
ब्रह्माण्डनायकं तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥५५॥

मन्दारमूलनिलयं मन्दारकुसुमप्रियम् ।
बृन्दारकप्रियतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II५६॥

महेन्द्रियं महाबाहुं विश्वासपरिपूरकम् ।
सुलभासुलभं लभ्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ५७॥

बीजाधारं बीजरूपं निर्बीजं बीजवृद्धिदम् ।
परेशं बीजनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II५८॥

युगाकारं युगाधीशं युगकृद्युगनाशनम् ।
परेशं बीजनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II५९॥

धूर्जटिं पिङ्गलजटं जटामण्डलमण्डितम् ।
कर्पूरगौरं गौरीशं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II६०॥

सुरावासं जनावासं योगीशं योगिपुङ्गवम् ।
योगदं योगिनां सिंहं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६१॥

उत्तमानुत्तमं तत्त्वं अन्धकासुरसूदनम् ।
भक्तकल्पद्रुमस्तोमं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६२॥

विचित्रमाल्यवसनं दिव्यचन्दनचर्चितम् ।
विष्णुब्रह्मादि वन्द्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥६३॥

कुमारं पितरं देवं श्रितचन्द्रकलानिधिम् ।
ब्रह्मशत्रुं जगन्मित्रं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६४॥

लावण्यमधुराकारं करुणारसवारधिम् ।
भ्रुवोर्मध्ये सहस्रार्चिं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६५॥

जटाधरं पावकाक्षं वृक्षेशं भूमिनायकम् ।
कामदं सर्वदागम्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II६६॥

शिवं शान्तं उमानाथं महाध्यानपरायणम् ।
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६७॥

वासुक्युरगहारं च लोकानुग्रहकारणम् ।
ज्ञानप्रदं कृत्तिवासं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६८॥

शशाङ्कधारिणं भर्गं सर्वलोकैकशङ्करम् I
शुद्धं च शाश्वतं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥६९॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणम् ।
गम्भीरं च वषट्कारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७०॥

भोक्तारं भोजनं भोज्यं जेतारं जितमानसम् I
करणं कारणं जिष्णुं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७१॥

क्षेत्रज्ञं क्षेत्रपालञ्च परार्धैकप्रयोजनम् ।
व्योमकेशं भीमवेषं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७२॥

भवज्ञं तरुणोपेतं चोरिष्टं यमनाशनम् ।
हिरण्यगर्भं हेमाङ्गं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७३॥

दक्षं चामुण्डजनकं मोक्षदं मोक्षनायकम् ।
हिरण्यदं हेमरूपं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II७४॥

महाश्मशाननिलयं प्रच्छन्नस्फटिकप्रभम् ।
वेदास्यं वेदरूपं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II७५॥

स्थिरं धर्मं उमानाथं ब्रह्मण्यं चाश्रयं विभुम् I
जगन्निवासं प्रथममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II७६॥

रुद्राक्षमालाभरणं रुद्राक्षप्रियवत्सलम् ।
रुद्राक्षभक्तसंस्तोममेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७७॥

फणीन्द्रविलसत्कण्ठं भुजङ्गाभरणप्रियम् I
दक्षाध्वरविनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥७८॥

नागेन्द्रविलसत्कर्णं महीन्द्रवलयावृतम् ।
मुनिवन्द्यं मुनिश्रेष्ठमेकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II७९॥

मृगेन्द्रचर्मवसनं मुनीनामेकजीवनम् ।
सर्वदेवादिपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II८०॥

निधनेशं धनाधीशं अपमृत्युविनाशनम् ।
लिङ्गमूर्तिमलिङ्गात्मं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥८१॥

भक्तकल्याणदं व्यस्तं वेदवेदान्तसंस्तुतम् ।
कल्पकृत्कल्पनाशं च एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥८२॥

घोरपातकदावाग्निं जन्मकर्मविवर्जितम् ।
कपालमालाभरणं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८३॥

मातङ्गचर्मवसनं विराड्रूपविदारकम् ।
विष्णुक्रान्तमनन्तं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८४॥

यज्ञकर्मफलाध्यक्षं यज्ञविघ्नविनाशकम् ।
यज्ञेशं यज्ञभोक्तारं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ II८५॥

कालाधीशं त्रिकालज्ञं दुष्टनिग्रहकारकम् ।
योगिमानसपूज्यं च एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८६॥

महोन्नतमहाकायं महोदरमहाभुजम् ।
महावक्त्रं महावृद्धं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥८७॥

सुनेत्रं सुललाटं च सर्वभीमपराक्रमम् ।
महेश्वरं शिवतरं एकबिल्वं शिवार्पणम् II८८॥

समस्तजगदाधारं समस्तगुणसागरम् ।
सत्यं सत्यगुणोपेतं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥ ८९॥

माघकृष्णचतुर्दश्यां पूजार्थं च जगद्गुरोः ।
दुर्लभं सर्वदेवानां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९०॥

तत्रापि दुर्लभं मन्येत् नभोमासेन्दुवासरे ।
प्रदोषकाले पूजायां एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९१॥

तटाकं धननिक्षेपं ब्रह्मस्थाप्यं शिवालयम्
कोटिकन्यामहादानं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९२॥

दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम् ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् II९३॥

तुलसीबिल्वनिर्गुण्डी जम्बीरामलकं तथा ।
पञ्चबिल्वमिति ख्यातं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥९४॥

अखण्डबिल्वपत्रैश्च पूजयेन्नन्दिकेश्वरम् ।
मुच्यते सर्वपापेभ्यः एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९५॥

सालङ्कृता शतावृत्ता कन्याकोटिसहस्रकम् ।
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥९६॥

दन्त्यश्वकोटिदानानि अश्वमेधसहस्रकम् ।
सवत्सधेनुदानानि एकबिल्वं शिवार्पणम् II९७॥

चतुर्वेदसहस्राणि भारतादिपुराणकम् ।
साम्राज्यपृथ्वीदानं च एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥९८॥

सर्वरत्नमयं मेरुं काञ्चनं दिव्यवस्त्रकम् ।
तुलाभागं शतावर्तं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥९९॥

अष्टोत्तरश्शतं बिल्वं योऽर्चयेल्लिङ्गमस्तके ।
अधर्वोक्तं अधेभ्यस्तु एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१००॥

काशीक्षेत्रनिवासं च कालभैरवदर्शनम् ।
अघोरपापसंहारं एकबिल्वं शिवार्पणम् II१०१॥

अष्टोत्तरशतश्लोकैः स्तोत्राद्यैः पूजयेद्यथा ।
त्रिसन्ध्यं मोक्षमाप्नोति एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥१०२॥

दन्तिकोटिसहस्राणां भूः हिरण्यसहस्रकम्
सर्वक्रतुमयं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् II१०३॥

पुत्रपौत्रादिकं भोगं भुक्त्वा चात्र यथेप्सितम् ।
अन्ते च शिवसायुज्यं एकबिल्वं शिवार्पणम्
॥१०४॥

विप्रकोटिसहस्राणां वित्तदानाच्च यत्फलम् ।
तत्फलं प्राप्नुयात्सत्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०५॥

त्वन्नामकीर्तनं तत्त्वं तवपादाम्बु यः पिबेत्
जीवन्मुक्तोभवेन्नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०६॥

अनेकदानफलदं अनन्तसुकृतादिकम् ।
तीर्थयात्राखिलं पुण्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०७॥

त्वं मां पालय सर्वत्र पदध्यानकृतं तव ।
भवनं शाङ्करं नित्यं एकबिल्वं शिवार्पणम् ॥१०८॥

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