Tuesday 8 December 2015

"औकात" भूल जाता हू

मैं, भी कितना अजीब हूँ न !

व्यस्त होता हूँ तो ''साधना'' भूल जाता हूँ
बुराई करूँ तो ''अंजाम'' भूल जाता हूँ
भोजन में ''धन्यवाद'' कहना भूल जाता हूँ
गुस्से में तो ''बर्दाश्त'' भूल जाता हूँ!
सफर पर जाऊँ तो ''प्रार्थना''भूल जाता हूँ

क्या शान है मेरे ''परमेश्वर'' की वह फिर भी नवाज़ता है, ....वह नहीं भूलता....
भले ही मैं अपनी "औकात" भूल जाता हूँ

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