Saturday 12 December 2015

बन्धन


   जो  बाँधने से बंध जाए
             और तोड़ने से टूट जाए
             उसका नाम है "बन्धन"

        जो अपने आप बन जाए
             और  जीवन भर ना टूटे
             उसका नाम है "सम्बन्ध"     

   और प्रार्थना है श्री माताजी से:-
हमारी सब कमियों को दूर कर दें। गलतियों को क्षमा कर दें और अपने से सम्बन्ध और मज़बूत कर दें।

Friday 11 December 2015

वक्त

दुनिया का सबसे अच्छा तोहफा "वक्त" है।
क्योंकी,
जब आप किसीको अपना वक्त
देतें हैँ,
तोह आप उसे अपनी "जिंदगी" का वोह
पल देतें हैं,
जो कभी लौटकर नहीं आता....!

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Wednesday 9 December 2015

Thanks is not a Gift

Giving with an Expectation of a Return in the form of a Compliment or Thanks is not a Gift, then it becomes a Trade.

"Give without expecting anything in Return.

धन्यवाद अथवा प्रशंसा के रूप में वापसी की अपेक्षा से दिया हुआ, दान नहीं होता है अपितु व्यापार बन जाता है।

बिना किसी अपेक्षा के दिया जाए।

Tuesday 8 December 2015

सुमिरन का फल


एक बार तुलसीदास जी से किसी ने पूछा :-"कभी-कभी भक्ति करने को मन नहीं करता फिर भी नाम जपने के लिये बैठ जाते है, क्या उसका भी कोई फल मिलता है ?"

तुलसी दास जी ने मुस्करा कर कहा-"तुलसी मेरे राम को रीझ भजो या खीज ।भौम पड़ा जामे सभीउल्टा सीधा बीज ॥" अर्थात् :भूमि में जब बीज बोये जाते हैं तो यह नहीं देखा जाता कि बीज उल्टे पड़े हैं या सीधे पर फिर भी कालांतर में फसल बन जाती है, इसी प्रकार नाम सुमिरन कैसे भी किया जाये उसके सुमिरन का फल अवश्य ही मिलता है।

"औकात" भूल जाता हू

मैं, भी कितना अजीब हूँ न !

व्यस्त होता हूँ तो ''साधना'' भूल जाता हूँ
बुराई करूँ तो ''अंजाम'' भूल जाता हूँ
भोजन में ''धन्यवाद'' कहना भूल जाता हूँ
गुस्से में तो ''बर्दाश्त'' भूल जाता हूँ!
सफर पर जाऊँ तो ''प्रार्थना''भूल जाता हूँ

क्या शान है मेरे ''परमेश्वर'' की वह फिर भी नवाज़ता है, ....वह नहीं भूलता....
भले ही मैं अपनी "औकात" भूल जाता हूँ

आप अकेले

आप अकेले बोल तो सकते है;
                    परन्तु
       बातचीत नहीं कर सकते ।
  आप अकेले आनन्दित हो सकते है
                    परन्तु
        उत्सव नहीं मना सकते।
   अकेले  आप मुस्करा तो सकते है
                    परन्तु
      हर्षोल्लास नहीं मना सकते.
           हम सब एक दूसरे
          के बिना कुछ नहीं हैं
     यही रिश्तों की खूबसूरती है ll
             
      
          

निर्माणों के पावन युग म

निर्माणों के पावन युग मे
हम चरित्र निर्माण न भूलें,
स्वार्थ साधना की आँधी मे
वसुधा का कल्याण न भूलें,

शील विनय आदर्श श्रेष्ठता
तार बिना झंकार नही है,
शिक्षा क्या स्वर साध सकेगी
यदि नैतिक आधार नही है,

कीर्ति कौमुदी की गरिमा मे
संस्कृति का सम्मान न भूलें,
निर्माणो के पावन युग मे
हम चरित्र निर्माण न भूलें।।