Wednesday 18 May 2016

सदा न संग

सदा न संग सहेलियां, सदा न राजा देश
सदा न जुग में जीवणा, सदा न काळा केश ।।

सदा न फूले केतकी, सदा न सावण होय
सदा न विपदा रह सके, सदा न सुख भी कोय।।

सदा न मौज बसंत री , सदा न ग्रीसम भांण
सदा न जोबन थिर रहे, सदा न संपत मांण ।।

सदा न काहूं की रही , गळ प्रीतम के बांह
ढळतां-ढळतां ढळ गई, तरवर की सी छांह ।

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