हँसते रहो, मुस्कुराते रहो
उठो ! जागो !! रुको मत !!! जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए ! कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे, उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीँ बढ़ता ! अपने ही मन मॆं कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन ! जो अपने कर्तव्य कार्य मॆं जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज मॆं नहीँ रहता उसे आंतरिक प्रसन्नता रहती है !
➡ जीवन मॆं उतार-चढाव आते ही रहते हैं !
➡ हँसते रहो, मुस्कुराते रहो !
➡ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीँ, मुस्कुराए नहीँ !
जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहते हैं, उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढ़ना नहीँ चाहिए !
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Friday, 16 October 2015
हँसते रहो, मुस्कुराते रहो
दिल जीत सकते है।
दो हाथ से हम पचास लोगों को नही मार सकते..
पर दो हाथ जोङ कर हम करोङो लोगों का दिल जीत सकते है।
नजरिए का फर्क
जिस इन्सान को किसी में बुराई ढूंढ़ने कि आदत होती है उसको बुराई ही मिलती है...
और
जिस इन्सान को किसी में अच्छाई ढूंढ़ने कि आदत होती है उस इन्सान को हमेशा अच्छाई ही नजर आती है...
"नजर नही बस नजरिए का फर्क है " ॥
रावण बनना भी कहां आसान ..
इस समय लोग रावण भी हो जाये वही बहुत हैं।।।।रावण बनना भी कहां आसान ....रावण में अहंकार था तो पश्चाताप भी था।।रावण में वासना थी तो संयम भी था।।।।रावण में सीता के अपहरण की ताकत थीतो बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श भी न करने का संकल्प भी था।।।सीता जीवित मिली ये राम की ही ताकत थी...पर...सीता पवित्र मिली ये रावण की भी मर्यादा थी ।।।।राम, तुम्हारे युग का रावण अच्छा था..दस के दस चेहरे, सब "बाहर" रखता था...!!
Thursday, 15 October 2015
परिवार और समाज
परिवार और समाज में वह व्यक्ति पराजित हो जाता है जो अभिमानी है,क्षमा करना नहीं जानता है तथा जो दूसरों को सुखी नहीं देखसकता।
जीत उसी की होती है जो विनम्र है,जिसे झुकना आता है,जो शांत है तथा सदैव दूसरों का भला चाहता है।
कौन सा अच्छा विचार
आज कोनसे अच्छे कपडे पेहनू,
जिस्से में आज अच्छा दिखूं,
'ये हर रोज हम सोचते हे'
मगर आज कोनसा अच्छा विचार लेके चलु,
जिस्से में भगवान को अच्छा लगु,
'ये हर रोज कोई नहीं सोचता'
Wednesday, 14 October 2015
नज़र रखो अपने ‘विचार’ पर,
नज़र रखो अपने ‘विचार’ पर,
क्योंकि वे ”शब्द” बनते हैँ।
नज़र रखो अपने ‘शब्द’ पर,
क्योंकि वे ”कार्य” बनते हैँ।
नज़र रखो अपने ‘कार्य’ पर,
क्योंकि वे ”स्वभाव” बनते हैँ।
नज़र रखो अपने ‘स्वभाव’ पर,
क्योंकि वे ”आदत” बनते हैँ।
नज़र रखो अपने ‘आदत’ पर,
क्योंकि वे ”चरित्र” बनते हैँ।
नज़र रखो अपने ‘चरित्र’ पर,
क्योंकि उससे ”जीवन आदर्श” बनते हैँ।....