Sunday, 1 May 2016

स्वर्ग में

Nice lines

स्वर्ग में सब कुछ है लेकिन मौत नहीं है,
गीता में सब कुछ है लेकिन झूठ नहीं है,
दुनिया में सब कुछ है लेकिन किसी को सुकून नहीं है,
और
आज के इंसान में सब कुछ है लेकिन सब्र नहीं 
राजा भोज ने कवि कालीदास से दस सर्वश्रेष्ट सवाल किए..

1- दुनिया में भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना क्या है ?
                         उत्तर - ''मां''
2 - सर्वश्रेष्ठ फूल कौन सा है ?
                         उत्तर - "कपास का फूल"
3 - सर्वश्र॓ष्ठ सुगंध कौनसी है ?
                        उत्तर - वर्षा से भीगी मिट्टी की सुगंध
4 - सर्वश्र॓ष्ठ मिठास कौनसी ?
                        उत्तर - "वाणी की"
5 - सर्वश्रेष्ठ दूध ?
                        उत्तर - "मां का"
6 - सबसे से काला क्या है ?
                        उत्तर - "कलंक"
7 - सबसे भारी क्या है?
                         उत्तर - "पाप"
8 - सबसे सस्ता क्या है ?
                         उत्तर -  "सलाह"
9 - सबसे महंगा क्या है ?
                         उत्तर -  "सहयोग"
10 - सबसे कडवा क्या है?
                         ऊत्तर - "सत्य".
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║    प्रेम से कहिये जय श्री राधे   ║
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अगर मेरे पास एक रुपया है और आपके पास भी एक रुपया है और हम एक दूसरे से बदल ले तो दोनों के पास एक एक रुपया ही रहेगा।
किंतु
अगर मेरे पास एक  अच्छा विचार है और आपके पास एक अच्छा विचार है और दोनों आपस में बदल ले तो दोनों के पास दो दो विचार होंगे!

है न ……!!
तो अच्छे विचारो का आदान प्रदान जारी रखिये...
और अपनी मानसिक पूंजी बढ़ाते रहिये ।
   ☝मंजिल वही, सोच नई

सरस्वती वंदना जैन मुनि दयासुरि जी विरचित       छंद सारसी

साथियों सुप्रभात अरूणोदय
अभिनंदन मां शारदे के वंदन
नमन के साथ आपका दिन
मंगलमय हो

सरस्वती वंदना जैन मुनि दयासुरि जी विरचित
      छंद सारसी

बुधि विमल करणी, विबुध वारणी,रूप रमणी, निरखई|
वर दियण बाला, पद प्रवाला,
मंत्र माला हरखई|
थिर थान थंभा, अति अचंभा, रूप रंभा, भलकती|
जय जय भवानी, जगत जाणी, राज राणी , सुरसती||१
सुरराज सेवित, देख  देवत, पदम पेखत आसणं|
सुख दाय सुरत, मात मूरत, दोख दुरित, नासणं|
त्रिहु लोक तारण,विघन वारण, धरा धारण धरपति|
जय जय भवानी , जगत जांणी, राज रांणी, सुरसती||२
कंटकां कोपती, लाख लोपती, अवनी ओपती, ईस्वरी|
संतां सुधारण, विघन वारण,मदन मारण तूं खरी|
खल़ दलां खंडण , छिद्र छंडण,दुष्ट दंडण, नरपति|
जय जय भवानी, जगत जाणी, राज रांणी, सरसती||३
शिव सगत सांची, रंग राची,अज अजाची,जोगणी|
मद झरत मत्ता, तरूण तत्ता,धत्त धत्ता ,योगिनी|
जीहां जपंती, मन रमंती, घवल़दंती,वरसती|
जय जय भवानी, जगत जांणी राज रांणी,सरसती||४
झणणाट झालर, धुधुमि धुप धरि,रीरीरी रव वर बज्जए|
ध ध ध्रों कि ध्रिगुदां,घघकी धिरदां,थथकि थीगुदां,गज्जए|
द्रां द्रां की द्रां द्रा,रूरुमि द्रां द्रां,ततकि त्रां त्रां, दमकती|
जय जय भवानी, जगत जांणी ,राज रांणी, सरसती||५

रिम रमक रम रम, झमकि झम झम, ठिमकि ठम ठम, नच्चए|
घम घमकि घम घम, गणकि गम गम, अति अगम नृत जच्चए|
तत थैय तत्ता, मान मत्ता, अचल आनन दरसती|
जय जय भवानी, जगत जांणी, राज रांणी, सरसती||६

जल़ थलां जांणी, पवन पांणी,वन वखाणी, वीजळी|
गिरवरां गाहण, वाघ वाहण, सरप साहण,सीतल़ी|
हद हाक थारी, हथ हजारी, धनुष धारी, भगवती|
जय जय भवानी, जगत जाणी ,राज राणी सुरसती||७
कर चक्र चालण, गर्व गाल़ण, झटक झालण ,गंजणी|
विरुदांवधारण,महिख मारण,दुक्ख दारुण भंजणी|
चरचियै चंडी, खल़ां खंडी,मुदित मंडी, मुल़कती|
जय जय भवानी, जगत जांणी, राज रांणी,सरसती||८
, कवि करै अष्टक , काट कष्टक, पिसण पष्टक, कीजईं|
मणिमौलि मंडित, पढहि पंडित,आई अखंडित,दीजई|
"दयासुरि" देवी,सुरां सेवी, नित नमेवी, जगपति|
भजिये भवानी, जगत जाणी, राज राणी सरसती||९

जय मां  शारदे.
सरदार सिंह सांदू

Thursday, 28 April 2016

मीठा ही रहू


दरिया ने झरने से पूछा
तुझे समन्दर नहीं बनना है क्या..?

झरने ने बड़ी नम्रता से कहा
बड़ा बनकर खारा हो जाने से अच्छा है

छोटा रह कर मीठा ही रहूँ

वक्त बड़ा बलवान होता है भैया... 

वक्त बड़ा बलवान होता है भैया...  देख लो

कल जिनके हवाई जहाज चला करते थे
आज उनके पास पासपोर्ट भी नहीं है

Tuesday, 26 April 2016

तीन गांठे

तीन गांठें

भगवान बुद्ध अक्सर अपने शिष्यों को शिक्षा प्रदान किया करते थे। एक दिन प्रातः काल बहुत से भिक्षुक उनका प्रवचन सुनने के लिए बैठे थे। बुद्ध समय पर सभा में पहुंचे, पर आज शिष्य उन्हें देखकर चकित थे क्योंकि आज पहली बार वे अपने हाथ में कुछ लेकर आए थे। करीब आने पर शिष्यों ने देखा कि उनके हाथ में एक रस्सी थी। बुद्ध ने आसन ग्रहण किया और बिना किसी से कुछ कहे वे रस्सी में गांठें लगाने लगे।

वहाँ उपस्थित सभी लोग यह देख सोच रहे थे कि अब बुद्ध आगे क्या करेंगे; तभी बुद्ध ने सभी से एक प्रश्न किया, मैंने इस रस्सी में तीन गांठें लगा दी हैं, अब मैं आपसे ये जानना चाहता हूँ कि क्या यह वही रस्सी है, जो गाँठें लगाने से पूर्व थी?

एक शिष्य ने उत्तर में कहा, गुरूजी इसका उत्तर देना थोड़ा कठिन है, ये वास्तव में हमारे देखने के तरीके पर निर्भर है। एक दृष्टिकोण से देखें तो रस्सी वही है, इसमें कोई बदलाव नहीं आया है। दूसरी तरह से देखें तो अब इसमें तीन गांठें लगी हुई हैं जो पहले नहीं थीं; अतः इसे बदला हुआ कह सकते हैं। पर ये बात भी ध्यान देने वाली है कि बाहर से देखने में भले ही ये बदली हुई प्रतीत हो पर अंदर से तो ये वही है जो पहले थी; इसका बुनियादी स्वरुप अपरिवर्तित है।

सत्य है !, बुद्ध ने कहा, अब मैं इन गांठों को खोल देता हूँ। यह कहकर बुद्ध रस्सी के दोनों सिरों को एक दुसरे से दूर खींचने लगे। उन्होंने पुछा, तुम्हें क्या लगता है, इस प्रकार इन्हें खींचने से क्या मैं इन गांठों को खोल सकता हूँ?

नहीं-नहीं, ऐसा करने से तो या गांठें तो और भी कस जाएंगी और इन्हे खोलना और मुश्किल हो जाएगा। एक शिष्य ने शीघ्रता से उत्तर दिया।

बुद्ध ने कहा, ठीक है, अब एक आखिरी प्रश्न, बताओ इन गांठों को खोलने के लिए हमें क्या करना होगा?

शिष्य बोला, इसके लिए हमें इन गांठों को गौर से देखना होगा, ताकि हम जान सकें कि इन्हे कैसे लगाया गया था, और फिर हम इन्हे खोलने का प्रयास कर सकते हैं।

मैं यही तो सुनना चाहता था। मूल प्रश्न यही है कि जिस समस्या में तुम फंसे हो, वास्तव में उसका कारण क्या है, बिना कारण जाने निवारण असम्भव है। मैं देखता हूँ कि अधिकतर लोग बिना कारण जाने ही निवारण करना चाहते हैं , कोई मुझसे ये नहीं पूछता कि मुझे क्रोध क्यों आता है, लोग पूछते हैं कि मैं अपने क्रोध का अंत कैसे करूँ? कोई यह प्रश्न नहीं करता कि मेरे अंदर अंहकार का बीज कहाँ से आया, लोग पूछते हैं कि मैं अपना अहंकार कैसे ख़त्म करूँ? जिस प्रकार रस्सी में में गांठें लग जाने पर भी उसका बुनियादी स्वरुप नहीं बदलता उसी प्रकार मनुष्य में भी कुछ विकार आ जाने से उसके अंदर से अच्छाई के बीज ख़त्म नहीं होते। जैसे हम रस्सी की गांठें खोल सकते हैं वैसे ही हम मनुष्य की समस्याएं भी हल कर सकते हैं। इस बात को समझो कि जीवन है तो समस्याएं भी होंगी ही, और समस्याएं हैं तो समाधान भी अवश्य होगा, आवश्यकता है कि हम किसी भी समस्या के कारण को अच्छी तरह से जानें, निवारण स्वतः ही प्राप्त हो जाएगा। महात्मा बुद्ध ने अपनी बात पूरी की।

"भाग्य" के दरवाजे


    

"भाग्य" के दरवाजे पर
            सर पीटने से बेहतर है,

          "कर्मो" का तूफ़ान पैदा करे
              सारे दरवाजे खुल जायेंगे.!

          परिस्थितिया जब विपरीत होती है,
            तब "प्रभाव और पैसा" नहीं
              "स्वभाव और सम्बंध" काम आते है ...
                  

     
                      
                   
    

Thursday, 21 April 2016

आत्मज्ञान

आज का सुविचार

आत्मा की सबसे बड़ी गलती अपने असली रूप को न पहचान पाना है।
और इसे केवल आत्मज्ञान प्राप्त कर के ही ठीक किया जा सकता है ।

आपको मानवता में विश्वास नहीं खोना चाहिए, मानवता एक सागर की तरह है।
यदि सागर की कुछ बूंदे खराब है, तो पूरा सागर गंदा नहीं हो जाता है