जीवन का एक सच-
एक दिन किसी निर्माण के दौरान भवन की छटी मंजिल से सुपर वाईजर ने नीचे कार्य करने वाले मजदूर को आवाज दी.
निर्माण कार्य की तेज आवाज के कारण नीचे काम करने वाला मजदूर कुछ समझ नहीं सका की उसका सुपरवाईजर उसे आवाज दे रहा है.
फिर
सुपरवाईजर ने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए एक १० रु का नोट नीचे फैंका, जो ठीक मजदूर के सामने जा कर गिरा
मजदूर ने नोट उठाया और अपनी जेब मे रख लिया, और फिर अपने काम मे लग गया .
अब उसका ध्यान खींचने के लिए सुपर वाईजर ने पुन: एक ५०० रु का नोट नीचे फैंका .
उस मजदूर ने फिर वही किया और नोट जेब मे रख कर अपने काम मे लग गया .
ये देख अब सुपर वाईजरने एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा लिया और मजदूर के उपर फैंका जो सीधा मजदूर के सिर पर लगा. अब मजदूर ने ऊपर देखा और उसकी सुपर वाईजर से बात चालू हो गयी.
ये वैसा ही है जो हमारी जिन्दगी मे होता है.....
भगवान् हमसे संपर्क करना ,मिलना चाहता है, लेकिन हम दुनियादारी के कामो मे व्यस्त रहते है, अत: भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें छोटी छोटी खुशियों के रूप मे उपहार देता रहता है, लेकिन हम उसे याद नहीं करते, और वो खुशियां और उपहार कहाँ से आये ये ना देखते हुए,उनका उपयोग कर लेते है, और भगवान् को याद नहीं करते.
भगवान् हमें और भी खुशियों रूपी उपहार भेजता है, लेकिन उसे भी हम हमारा भाग्य समझ कर रख लेते है, भगवान् का धन्यवाद नहीं करते ,उसे भूल जाते है.
तब भगवान् हम पर एक छोटा सा पत्थर फैंकते है , जिसे हम कठिनाई कहते है, और तुरंत उसके निराकरण के लिए भगवान् की और देखते है,याद करते है.
यही जिन्दगी मे हो रहा है.
यदि हम हमारी छोटी से छोटी ख़ुशी भी भगवान् के साथ उसका धन्यवाद देते हुए बाँटें, तो हमें भगवान् के द्वारा फैंके हुए पत्थर का इन्तजार ही नहीं करना पड़ेगा...!!!!!
शुभ दिन
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Thursday, 22 October 2015
जीवन का एक सच
Meaning of Dussehara
DASHA HARA is a Sanskrit word which means removal of ten bad qualities within you. 1. Kama vasana ( Lust ) 2. Krodha ( anger) 3. Moha ( attachment) 4. Lobha ( greed ) 5. Mada ( over-pride ) 6. Matsara ( jealousy) 7. Swartha ( Selfishness) 8. Anyaaya ( injustice) 9. Amanavta ( cruelty) 10. Ahankara ( ego) It's also known as ' Vijaydashami ' which means Vijaya over these ten bad qualities.
...... शुद्ध कर देता है।
स्नान तन को
ध्यान मन को
दान धन को
योग जीवन को
प्रार्थना आत्मा को
व्रत स्वास्थ को
क्षमा रिश्तो को
""""""और""""""
परोपकार किस्मत को
शुद्ध कर देता है।।
Wednesday, 21 October 2015
फेरा शमशान का
जब भी अपनी शख्शियत पर अहंकार हो,
एक फेरा शमशान का जरुर लगा लेना।
और....
जब भी अपने परमात्मा से प्यार हो,
किसी भूखे को अपने हाथों से खिला देना।
जब भी अपनी ताक़त पर गुरुर हो,
एक फेरा वृद्धा आश्रम का लगा लेना।
और….
जब भी आपका सिर श्रद्धा से झुका हो,
अपने माँ बाप के पैर जरूर दबा देना।
जीभ जन्म से होती है और मृत्यु तक रहती है क्योकि वो कोमल होती है.
दाँत जन्म के बाद में आते है और मृत्यु से पहले चले जाते हैं...
क्योकि वो कठोर होते है।
छोटा बनके रहोगे तो मिलेगी हर
बड़ी रहमत...
बड़ा होने पर तो माँ भी गोद से उतार
देती है..
किस्मत और पत्नी
भले ही परेशान करती है लेकिन
जब साथ देती हैं तो
ज़िन्दगी बदल देती हैं.।।
"प्रेम चाहिये तो समर्पण खर्च करना होगा।
विश्वास चाहिये तो निष्ठा खर्च करनी होगी।
साथ चाहिये तो समय खर्च करना होगा।
किसने कहा रिश्ते मुफ्त मिलते हैं ।
मुफ्त तो हवा भी नहीं मिलती ।
एक साँस भी तब आती है,
जब एक साँस छोड़ी जाती है!!"?.:
नंगे पाँव चलते “इन्सान” को लगता है
कि “चप्पल होते तो अच्छा होता”
बाद मेँ……….
“साइकिल होती तो कितना अच्छा होता”
उसके बाद में………
“मोपेड होता तो थकान नही लगती”
बाद में………
“मोटर साइकिल होती तो बातो-बातो मेँ
रास्ता कट जाता”
फिर ऐसा लगा की………
“कार होती तो धूप नही लगती”
फिर लगा कि,
“हवाई जहाज होता तो इस ट्रैफिक का झंझट
नही होता”
जब हवाई जहाज में बैठकर नीचे हरे-भरे घास के मैदान
देखता है तो सोचता है,
कि “नंगे पाव घास में चलता तो दिल
को कितनी “तसल्ली” मिलती”…..
” जरुरत के मुताबिक “जिंदगी” जिओ – “ख्वाहिश”….. के
मुताबिक नहीं………
क्योंकि ‘जरुरत’
तो ‘फकीरों’ की भी ‘पूरी’ हो जाती है, और
‘ख्वाहिशें’….. ‘बादशाहों ‘ की भी “अधूरी” रह जाती है”…..
“जीत” किसके लिए, ‘हार’ किसके लिए
‘ज़िंदगी भर’ ये ‘तकरार’ किसके लिए…
जो भी ‘आया’ है वो ‘जायेगा’ एक दिन
फिर ये इतना “अहंकार” किसके लिए…
ए बुरे वक़्त !
ज़रा “अदब” से पेश आ !!
“वक़्त” ही कितना लगता है
“वक़्त” बदलने में………
मिली थी ‘जिन्दगी’ , किसी के
‘काम’ आने के लिए…..
पर ‘वक्त’ बीत रहा है , “कागज” के “टुकड़े” “कमाने” के लिए………
,
Sunday, 18 October 2015
इनसे क्या होगा,अगर बदले नहीँ विचार।
गंगा में डुबकी लगाकर,तीर्थ किए हज़ार।
इनसे क्या होगा,अगर बदले नहीँ विचार।
"इस दुनियाँ के हर शख्स को नफरत है "झूठ" से...
मैं परेशान हूँ ये सोचकर, कि फिर ये "झूठ" बोलता कौन है"।
"निंदा "तो उसी की होती है
जो"जिंदा" है।
मरे हुए कि तो बस तारीफ ही होती हैं।
महसूस जब हुआ कि सारा शहर,
मुझसे जलने लगा है,
तब समझ आ गया कि अपना नाम भी,
चलने लगा है”…
सदा उनके कर्जदार रहिये जो आपके लिए कभी खुद का वक्त नहीं देखता है,
और
सदा उनसे वफ़ादार रहिये जो व्यस्त होने के बावजूद भी आपके लिए वक़्त निकालता है।
मोक्ष का एक ही मार्ग है।
और वह बिल्कुल सीधा ही है।
अब
मुशकिल उन्हें होती है।
जिनकी चाल ही टेड़ी है।
हम जब दिन की शुरुआत करते है,
तब लगता है की, पैसा ही जीवन है ..
लेकिन, जब शाम को लौट कर घर आते है,
तब लगता है, शान्ति ही जीवन है ।
फलदार पेड़ और गुणवान व्यक्ति ही झुकते है ,
सुखा पेड़ और मुर्ख व्यक्ति कभी नहीं झुकते ।
कदर किरदार की होती है… वरना…
कद में तो साया भी इंसान से बड़ा होता है.......
पानी मर्यादा तोड़े तो "विनाश"
"और"
वाणी मर्यादा तोड़े तो "सर्वनाश"
इसलिए हमेशा अपनी वाणी पर संयम रखो।
Saturday, 17 October 2015
चाँद और भगवान् राम
चाँद को भगवान् राम से यह शिकायत है की दीपवली का त्यौहार अमावस की रात में मनाया जाता है और क्योंकि अमावस की रात में चाँद निकलता ही नहीं है इसलिए वह कभी भी दीपावली मना नहीं सकता। यह एक मधुर कविता है कि चाँद किस प्रकार खुद को राम के हर कार्य से जोड़ लेता है और फिर राम से शिकायत करता है और राम भी उस की बात से सहमत हो कर उसे वरदान दे बैठते हैं आइये देखते हैं ।
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जब चाँद का धीरज छूट गया ।
वह रघुनन्दन से रूठ गया ।
बोला रात को आलोकित हम ही ने करा है ।
स्वयं शिव ने हमें अपने सिर पे धरा है ।
तुमने भी तो उपयोग किया हमारा है ।
हमारी ही चांदनी में सिया को निहारा है ।
सीता के रूप को हम ही ने सँभारा है ।
चाँद के तुल्य उनका मुखड़ा निखारा है ।
जिस वक़्त याद में सीता की ,
तुम चुपके - चुपके रोते थे ।
उस वक़्त तुम्हारे संग में बस ,
हम ही जागते होते थे ।
संजीवनी लाऊंगा ,
लखन को बचाऊंगा ,.
हनुमान ने तुम्हे कर तो दिया आश्वश्त
मगर अपनी चांदनी बिखरा कर,
मार्ग मैंने ही किया था प्रशस्त ।
तुमने हनुमान को गले से लगाया ।
मगर हमारा कहीं नाम भी न आया ।
रावण की मृत्यु से मैं भी प्रसन्न था ।
तुम्हारी विजय से प्रफुल्लित मन था ।
मैंने भी आकाश से था पृथ्वी पर झाँका ।
गगन के सितारों को करीने से टांका ।
सभी ने तुम्हारा विजयोत्सव मनाया।
सारे नगर को दुल्हन सा सजाया ।
इस अवसर पर तुमने सभी को बुलाया ।
बताओ मुझे फिर क्यों तुमने भुलाया ।
क्यों तुमने अपना विजयोत्सव
अमावस्या की रात को मनाया ?
अगर तुम अपना उत्सव किसी और दिन मानते ।
आधे अधूरे ही सही हम भी शामिल हो जाते ।
मुझे सताते हैं , चिड़ाते हैं लोग ।
आज भी दिवाली अमावस में ही मनाते हैं लोग ।
तो राम ने कहा, क्यों व्यर्थ में घबराता है ?
जो कुछ खोता है वही तो पाता है ।
जा तुझे अब लोग न सतायेंगे ।
आज से सब तेरा मान ही बढाएंगे ।
जो मुझे राम कहते थे वही ,
आज से रामचंद्र कह कर बुलायेंगे ।
जय श्री राम...!! !!!..!!!
Friday, 16 October 2015
हँसते रहो, मुस्कुराते रहो
हँसते रहो, मुस्कुराते रहो
उठो ! जागो !! रुको मत !!! जब तक लक्ष्य न प्राप्त हो जाए ! कोई दूसरा हमारे प्रति बुराई करे या निंदा करे, उद्वेगजनक बात कहे तो उसको सहन करने और उसे उत्तर न देने से बैर आगे नहीँ बढ़ता ! अपने ही मन मॆं कह लेना चाहिए कि इसका सबसे अच्छा उत्तर है मौन ! जो अपने कर्तव्य कार्य मॆं जुटा रहता है और दूसरों के अवगुणों की खोज मॆं नहीँ रहता उसे आंतरिक प्रसन्नता रहती है !
➡ जीवन मॆं उतार-चढाव आते ही रहते हैं !
➡ हँसते रहो, मुस्कुराते रहो !
➡ऐसा मुख किस काम का जो हँसे नहीँ, मुस्कुराए नहीँ !
जो व्यक्ति अपनी मानसिक शक्ति स्थिर रखना चाहते हैं, उनको दूसरों की आलोचनाओं से चिढ़ना नहीँ चाहिए !