Friday 10 April 2020

आखिर क्यों भृगु ऋषि में मारी भगवान विष्णु के लात - पौराणिक कथा

आखिर क्यों भृगु ऋषि में मारी भगवान विष्णु के लात - पौराणिक कथा

दुर्वासा मुनि की बात छोड़ दी जाए तो यह कहना गलत नही होगा कि ऋषि-मुनि जल्दी नाराज नहीं होते थे। लेकिन एकबार जब खफा हो गए तो बिना शाप दिए शांत भी नहीं होते थे। लेकिन भृगु ऋषि ने जो किया वह तो हतप्रभ कर देने वाली बात थी।

भृगु ऋषि ने क्षीरसागर में शेषशैय्या पर सोते हुए भगवान विष्णु की छाती पर अपने पैर से जोरदार प्रहार किया था। महान ग्रंथ ’भृगु संहिता’ के प्रतिष्ठित रचयिता, प्रबुद्ध चिंतक और महाज्ञानी भृगु ऋषि ने ऐसा किया, तो जरूर कोई-न-कोई विशेष बात रही होगी। आइए जानते हैं इस रोचक प्रसंग के बारे में।

एकबार धरती पर पावन सरस्वती नदी के तट पर सभी ऋषियों-मुनियों का विशाल सत्संग हुआ। विभिन्न विषयों और मुद्दों पर व्यापक वाद-विवाद और चर्चा-परिचर्चा हुई। ऐसे में एक प्रसंग यह भी उठा कि त्रिदेवों यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठ कौन है?

काफी तर्क-वितर्क के बाद भी जब इस प्रश्न का समाधान न मिला तो सभा ने ऋषियों में श्रेष्ठ भृगु ऋषि को यह चुनौतीपूर्ण दायित्व सौंपा कि वे पता लगाएं त्रिदेवों में से श्रेष्ठ कौन है।

भृगु ऋषि जगत-स्रष्टा ब्रह्मा के मानस पुत्र थे। अपने लक्ष्य-संधान के लिए भृगु सबसे पहले अपने पिता के ही पास गए। उन्होंने ब्रह्माजी की परीक्षा मानस उपाय से ही लेने का निर्णय किया।

जब भृगु अपने पिता के पास पहुंचे तो न कोई अभिवादन किया और न ही कोई आदर-सत्कार दिखाया। भृगुजी की इस अशिष्टता को देखकर ब्रह्माजी क्रोधित हो उठे और शाप देने को उद्धत हो गए।

लेकिन जब ब्रह्माजी शाप देने ही वाले थे कि तभी उन्हें स्मरण हुआ कि ये तो मेरा ही पुत्र है। इसलिए उन्होंने क्रोध को पी लिया। हालांकि भृगुजी से यह छिप न सका और उन्होंने ब्रह्माजी से वहां से प्रस्थान की आज्ञा ले ली।

इसके बाद भृगु ऋषि कैलाश पर्वत भगवान शिव के पास गए। भृगु ऋषि को आया देख शिव ने अपने स्थान से उठकर उनको आदर दिया। लेकिन भृगु तो कुछ सोचकर आए थे, इसलिए वे भला-बुरा कहकर शिव का अपमान करने लगे। वे कहने लगे कि आप तो रहने ही दीजिए महादेव, आप मुझे न छुएं। आपकी वेषभूषा गंदी है, पता नहीं आप नहाते भी है या नहीं।

इसपर महादेव शिव काफी क्रोधित हो उठे और उन्होंने त्रिशूल उठा लिया। लेकिन ऐन मौके पर देवी पार्वती ने उन्हें रोक लिया और ब्रह्माजी के पुत्र होने के नाते प्राणदान की विनती की। तब जाकर शिव का क्रोध शांत हो पाया।

अब वैकुण्ठ के स्वामी विष्णु की बारी थे। जब भृगु वैकुण्ठ पहुंचे तब विष्णु शेषशैय्या पर निद्रा में लीन थे। लक्ष्मी देवी उनकी सेवा में रत थी। उसी स्थिति में भृगुजी आगे बढ़े और अपने पांव से विष्णुजी के छाती पर प्रहार किया।

विष्णुजी की निद्रा-भंग हो गयी, लेकिन गुस्सा होने के बजाए उन्होंने भृगुजी से कहा, क्षमा करें ऋषिवर! मैं आपको देख न पाया। मेरी छाती बड़ी कठोर है, कहीं आप के पांव में चोट तो नहीं लगी?

भृगु ऋषि गदगद हो उठे। उन्होंने तीनों देवो से क्षमायाचना कर पूरा वृतांत सुनाया। इस प्रकार यह निर्णय हो गया कि तीनों देवों में श्रेष्ठ कौन हैं।

लेकिन लक्ष्मी अपने पति का अपमान सहन ना कर सकी और समस्त ब्राह्मण कुल को निर्धनता का श्राप दे दिया ।

Monday 6 April 2020

प्रेरणादायक कहानियां

 प्रेरणादायक कहानियां -


1.अंधा और लालटेन


एक गांव में एक दिव्यांग - दृष्टिहीन (अंधा) व्यक्ति रहता था। वह रात में जब भी बाहर जाता, एक जली हुई लालटेन हमेशा अपने साथ रखता। एक रात वह अपने दोस्त के घर से भोजन कर वापस अपने घर लौट रहा था। इस बार भी उसके साथ हमेशा की तरह एक जली हुई लालटेन थी। वापस लौटते समय रास्ते में कुछ शरारती लड़कों ने उसके हाथ में लालटेन देखी तो उस पर हंसने लगे और उसका मजाक उड़ाते हुए कहा- अरे! देखो- देखो अंधा लालटेन लेकर जा रहा है। अंधे को लालटेन का क्या काम?

उनकी बात सुनकर अंधा व्यक्ति विनम्रता से बोला- ‘सही कहते हो भैया, मैं तो अंधा हूं, देख नहीं सकता। मेरी दुनिया में तो हमेशा अंधेरा ही रहा है। मुझे लालटेन का क्या काम। मेरी आदत तो अंधेरे में जीने की ही है, लेकिन आप जैसे आंखों वाले लोगों को तो अंधेरे में जीने की आदत नहीं होती। आप लोगों को अंधेरे में देखने में समस्या हो सकती है। कहीं आप जैसे लोग मुझे अंधेरे में ना देख पाए और धक्का दे दिया तो मुझ बेचारे का क्या होगा। इसलिए यह लालटेन लेकर चलता हूं ताकि आप अंधेरे में अंधे को देख सकें। अंधे व्यक्ति की बात सुनकर वह लड़के शर्मिंदा हो गए और उस से माफी मांगने लगे उन्होंने तय किया कि अब भविष्य में कभी किसी दिव्यांग का मजाक नहीं बनाएंगे।

*कहानी का सबक- कभी किसी को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए और अच्छी तरह सोच विचार करके ही किसी पर टिप्पणी करनी चाहिए।


*2. रोशनी की बचत

एक बार प्रसिद्ध लेखक जॉन मुरे अपने लेखन में व्यस्त थे। तभी दो महिलाएं जन-कल्याण से संस्था के लिए उनसे चंदा मांगने आईं। अपना लेखन कार्य बीच में छोड़ने के बाद जॉन मुरे ने वहां जल रही दो मोमबत्तियों में से एक को बुझा दिया। यह देखकर उनमें से एक महिला बुदबुदाई, “यहां कुछ मिलने वाला नहीं है।”

जॉन मुरे को जब उन महिलाओं के आने के उद्देश्य का पता चला, तो उन्होंने खुशी-खुशी से 100 डॉलर उन्हें दे दिये।महिलाओं के आश्चर्य का ठिकाना न रहा, उनमें से एक बोली-“हमें तो आपसे एक पैसा भी पाने की उम्मीद नहीं थी, क्योंकि आपने हमारे आते ही एक मोमबत्ती बुझा दी थी।”

जॉन मुरे ने उत्तर दिया, “अपनी इसी बचत की आदत के कारण ही मैं आपको 100 डॉलर देने में समर्थ हुआ हूं। मेरे विचार से आपसे बातचीत करने के लिए एक मोमबत्ती का प्रकाश ही काफी है।” महिलाएं बचत के महत्व को समझ चुकी थीं।

*कहानी का सबक- बचत करने और कंजूसी करने में फर्क है। हमें हमेशा सोच समझ कर खर्च करना चाहिए तभी हम अपने देश और समाज का भला कर सकते हैं।


*3. उम्मीद की रोशनी

एक बार की बात है, एक घर मे जल रहे पांच दीये आपस में बात कर रहे थे। उत्साह नाम के पहले दीये ने कहा – ‘इतना जलकर भी मेरी रोशनी की लोगों को कोई कद्र नहीं है, इससे तो बेहतर यही होगा कि मैं बुझ जाऊं ‘ और वह दीया निराश हो बुझ गया। कुछ देर बाद शांति का प्रतीक दूसरा दीया भी लोगों द्वारा फैलाई जा रही अशांति के बारे में सोच कर बुझ गया। अब बारी थी हिम्मत नाम के तीसरे दीये की, अपने दो साथियों की दशा देखकर उसकी हिम्मत भी जवाब दे गई और वह भी बुझ गया।

उत्साह, शांति और हिम्मत का हाल देख समृद्धि का प्रतीक चौथा दीया भी बुझ गया। अब केवल पांचवां दीया जो सबसे छोटा था, अकेला जल कर रोशनी फैला रहा था। तभी घर में एक लड़का आता है। वहां जलता दीया देख वह खुशी नाचने लगा और फिर उस एक दीये से बाकी के चार दीये फिर से जला देता है। पांचवां दीया उम्मीद का दीया था। उत्साह, शांति, हिम्मत और समृद्धि के जाने के बाद भी उम्मीद को जिन्दा रखे हुए था। कहते हैं कि उम्मीद पर दुनिया कायम है। दुनिया में तमाम दुखों और तकलीफों में भी उम्मीद कायम रखे, इसका साथ कभी न छोड़ें।

*कहानी का सबक- अगर उम्मीद का दीया रोशन है तो सब कुछ खत्म होने के बाद भी एक नई शुरुआत की जा सकती है।


*4. ईमानदारी ही महानता है

मगध साम्राज्य में आचार्य चाणक्य की बुद्धि और सूझबूझ से हर कोई प्रभावित था। इतने बड़े प्रांत का संचालक होने के बाद भी चाणक्य साधारण जीवन जीते हुए झोपड़ी में रहते थे। एक बार एक विदेशी यात्री चाणक्य की प्रशंसा सुनकर उनसे मिलने आ पहुंचा। सांझ ढल चुकी थी और चाणक्य लेखन कार्य कर रहे थे। वहां तेल का एक दीपक जल रहा था। चाणक्य ने आगंतुक को आसान पर बैठने का अनुरोध किया। फिर वहां जल रहे दीपक को बुझा कर अन्दर गए और दूसरा दीपक को जला कर ले आए। उनके ऐसा करने पर विदेशी व्यक्ति समझ नहीं सका कि जलते दीपक को बुझाकर , बुझे हुए दूसरे दीपक को जलाना, कैसी बुद्धिमानी हो सकती है ? उसने संकोच करते हुए चाणक्य से पूछा - यह क्या खेल है ? जलते दीपक को बुझाना और बुझे दीपक को जलाना ! जला था तो बुझाया ही क्यों और बुझाया तो जलाया ही क्यों ? रहस्य क्या है ?

चाणक्य ने मुस्कुराते हुए कहा इतनी देर से मैं अपना निजी कार्य कर रहा था, इसलिए मेरे अर्जित किए धन से खरीदे तेल से यह दीपक जल रहा था, अब आप आए है तो मुझे राज्य कार्य में लगना होगा, इसलिए यह दीपक जलाया है क्योंकि इसमें राजकोष से मिले धन का तेल है। आगंतुक चाणक्य की ईमानदारी देख बड़ा प्रभावित हुआ।

*कहानी का सबक- हम चाहे कितने भी प्रभावशाली क्यों न बन जाएं, ईमानदारी का एक गुण हमेशा काम आता है और इसी से व्यक्ति का पूरा चरित्र बनता है।


*5. अपना दीपक बनो

यह कहानी भगवान बुद्ध ने अपने शिष्यों को सुनाई थी - एक बार की बात है, दो यात्री धर्मशाला में ठहरे हुए थे। सांझ का समय था और वहां पर दीये बेचने वाला एक कुम्हार आया। एक यात्री ने उससे दीया खरीद लिया। वहीं, दूसरे ने सोचा कि, इसने अपने लिए खरीद लिया है तो मैं भी इसके साथ ही चल पडूंगा, तो मुझे पैसा खर्च करके अलग दीया खरीदने की क्या जरूरत है।

कुछ देर बाद अपना दीया जलाकर पहला यात्री रात में अपने अगले ठिकाने की ओर चल पड़ा, दूसरा भी उसके साथ निकल पड़ा। थोड़ी दूर चलने पर दीया खरीदने वाला यात्री एक ओर मुड़ गया। लेकिन, दूसरे यात्री को विपरीत दिशा में जाना था। इसलिए वह वहीं रह गया और दीया न होने के कारण बिना उजाले किसी भी दिशा में आगे नहीं जा पाया।

*कहानी का सबक - महात्मा बुद्ध ने कहा कि- भिक्षुओं! अपना दीपक खुद बनो। आपके कार्य ही आपका दीपक हैं, वही आपको मार्ग दिखाएंगे।


*6. बुढ़िया की सुई
एक बार गांव में एक बुढ़िया रात के अँधेरे में अपनी झोपड़ी के बहार कुछ ढूंढ़ रही थी। तभी गांव के ही एक व्यक्ति की नजर उस पर पड़ी तो उसने पूछा , “अम्मा इतनी रात में रोड लाइट के नीचे क्या ढूंढ रही हो ?” इस पर बुढ़िया ने जवाब दिया कि, "कुछ नहीं मेरी सुई गुम हो गयी है बस वही खोज रही हूं।" फिर क्या था, वो व्यक्ति भी महिला के साथ में सुई खोजने लगा। कुछ देर में और भी लोग इस खोज अभियान में शामिल हो गए और देखते- देखते लगभग पूरा गांव ही इकट्‌ठा हो गया।

सभी बड़े ध्यान से सुई खोजने में लगे थे कि तभी किसी ने बुढ़िया से पूछा ,” अरे अम्मा ! ज़रा ये तो बताओ कि सुई गिरी कहां थी?” इस पर बूढ़ी महिला ने कहा” बेटा , सुई तो झोपड़ी के अन्दर गिरी थी।” ये सुनते ही सभी क्रोधित हो गए और भीड़ में से किसी ने ऊंची आवाज में कहा , ” कमाल करती हो अम्मा ,हम इतनी देर से सुई यहां ढूंढ रहे हैं, जबकि सुई अन्दर झोपड़ी में गिरी थी , आखिर सुई अंदर खोजने की बजाए बाहर क्यों खोज रही हो ?” बुढ़िया बोली” क्योंकि रोड पर लाइट जल रही है…इसलिए .”,.

*कहानी का सबक- ऐसा ही हम भी सोचते हैं कि लाइट कहां जल रही है, हम ये नहीं सोचते कि हमारा दिल क्या कह रहा है ; हमारी सुई कहां गिरी है।


*7. रोशनी की किरण

रोहित आठवीं कक्षा का छात्र था। वह बहुत आज्ञाकारी था, और हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहता था। वह शहर के एक साधारण मोहल्ले में रहता था, जहां बिजली के खम्भे तो लगे थे पर उन पर लगी लाइट सालों से खराब थी और बार-बार कंप्लेंट करने पर भी कोई उन्हें ठीक नहीं करता था। रोहित अक्सर सड़क पर आने-जाने वाले लोगों को अँधेरे के कारण परेशान होते देखता , उसके दिल में आता कि वो कैसे इस समस्या को दूर करे। इसके लिए वो जब अपने माता-पिता या पड़ोसियों से कहता तो सब इसे सरकार और प्रशासन की लापरवाही कह कर टाल देते। एक दिन रोहित कहीं से एक लम्बा सा बांस और बिजली का तार लेकर अपने कुछ दोस्तों की मदद से उसे अपने घर के सामने लगाकर उस पर एक बल्ब लगाने लगा।

आस-पड़ोस के लोगों ने देखा तो पूछा, ” अरे तुम ये क्या कर रहे हो ?” “मैं अपने घर के सामने एक बल्ब जलाने का प्रयास कर रहा हूँ ?” , रोहित बोला। इस पर पड़ोसियों ने कहा “अरे इससे क्या होगा , अगर तुम एक बल्ब लगा भी लोगे तो पूरे मोहल्ले में प्रकाश थोड़े ही फैल जाएगा, आने जाने वालों को तब भी परेशानी उठानी ही पड़ेगी !” रोहित बोला , कि इससे कम से कम मेरे घर के सामने से जाने वाले लोगों को परेशानी नहीं होगी” और ऐसा कहते हुए उसने एक बल्ब वहां टांग दिया। एक-दो दिन बाद कुछ और घरों के सामने भी लोगों ने बल्ब टांग दिए। धीरे- धीरे पूरा मोहल्ला प्रकाश से जगमग हो उठा। एक छोटे से लड़के के एक कदम ने इतना बड़ा बदलाव ला दिया था कि धीरे-धीरे पूरा शहर ही जगमगा गया।

*कहानी का सबक- हमारा एक छोटा सा कदम एक बड़ी क्रांति का रूप लेने की ताकत रखता है। जैसा की गांधी जी ने कहा है , हमें खुद वो बदलाव बनना चाहिए जो हम दुनिया में देखना चाहते हैं, तभी हम अंधेरे में रोशनी की किरण फैला सकते हैं।


*8.बल्ब का आविष्कार

दुनिया के महान वैज्ञानिकों में से एक थॉमस अल्वा एडिसन बहुत ही मेहनती थे। बचपन में उन्हें यह कहकर स्कूल से निकाल दिया गया था कि वह मंदबुद्धि है। लेकिन उन्होंने कई महत्वपूर्ण आविष्कार किए, जिसमें बिजली का बल्ब प्रमुख है। उन्होंने बल्ब का आविष्कार करने के लिए एक हजार बार प्रयोग किए थे और तब कहीं जाकर उन्हें सफलता मिली थी। एक बार जब वह बल्ब बनाने के लिए कोई प्रयोग कर रहे थे। तभी एक व्यक्ति ने उनसे पूछा आपने करीब एक हजार प्रयोग किए, लेकिन आपके सारे प्रयोग असफल रहे। साथ ही, आपकी मेहनत बेकार हो गई, क्या आपको दुःख नहीं होता ?

एडिसन ने कहा, "मैं सोचता हूं कि मेरे एक हजार प्रयोग असफल हुए है। मेरी मेहनत बेकार नहीं गई, क्योंकि मैंने एक हजार प्रयोग करके यह पता लगाया है कि इन एक हजार तरीकों से बल्ब नहीं बनाया जा सकता। मेरा हर प्रयोग, बल्ब बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है और मैं अपनी हर कोशिश के साथ एक कदम आगे बढ़ता हूं।"

आखिरकार एडिसन की मेहनत रंग लाई और उन्होंने बल्ब का आविष्कार करके पूरी दुनिया को रोशन कर दिया। यह थॉमस एडिसन का विश्वास ही था जिसने आशा की किरण को बुझने नहीं दिया और पूरी दुनिया को बल्ब देकर रोशन कर दिया।

*कहानी का सबक- किसी भी लक्ष्य की ओर बढ़ाया गया पहला कदम ही इंसान को सफलता तक ले जाता है। असफलता से न डरने वाले को ही सफलता मिलती है।


*9. लालटेन की रोशनी

एक बार एक शिष्य ने अपने गुरु से पूछा कि मैं अपने कठिनतम लक्ष्यों को कैसे प्राप्त कर सकता हूँ ? गुरुजी थोड़ा मुस्कुराए और कहा कि वह उसे आज रात उसके सवाल का जवाब देंगे।

शिष्य हर रोज शाम को नदी से पानी भरकर लाता था, ताकि रात को उसका इस्तेमाल हो सके। लेकिन, गुरुजी ने उसे उस दिन पानी लाने से मना कर दिया। रात होने पर शिष्य ने गुरुदेव को अपना सवाल याद दिलाया तो गुरुजी ने उसे एक लालटेन दी और फिर नदी से पानी लाने को कहा।

उस दिन अमावस्या थी और शिष्य भी कभी इतनी अंधेरी रात में बाहर नहीं गया था। अतः उसने कहा कि नदी तो यहां से बहुत दूर है और इस लालटेन के प्रकाश में इतना लम्बा सफर इस अंधेरे में कैसे तय करूंगा ? आप सुबह तक प्रतीक्षा कीजिए, मैं गागर सुबह भर लाऊंगा, गुरुजी ने कहा कि हमें पानी की जरूरत अभी है तो जाओ और गागर को भरकर लाओ।

गुरुजी ने कहा कि रोशनी तेरे हाथों में है और तू अंधेरे से डर रहा है। बस, फिर क्या था शिष्य लालटेन लेकर आगे बढ़ता रहा और नदी तक पहुंच गया और गागर भरकर लौट आया। शिष्य ने कहा कि मैं गागर भरकर ले आया हूँ, अब आप मेरे सवाल का जवाब दीजिए। तब गुरुजी ने कहा कि मैंने तो सवाल का जवाब दे दिया है, लेकिन शायद तुम्हें समझ में नहीं आया।

कहानी का सबक - गुरुजी ने समझाया कि यह दुनिया नदी के अंधियारे किनारे जैसी है, जिसमें हर एक क्षण लालटेन की रोशनी की तरह मिला हुआ है। अगर हम उस हर एक क्षण का इस्तेमाल करते हुए आगे बढ़ेंगे तो आनंदपूर्वक अपनी मंजिल तक पहुंच जाएंगे।



Thursday 22 December 2016

completeness

Smile indicates the Sweetness of heart and Silence indicates the Maturity of mind.
Having both indicates completeness of being human.

Monday 26 September 2016

संतो की वाणी

संतो की वाणी
कोई भी "आँख "से "काजल "चुरा नहीं सकता
विधि ने जो है" लिखा "वो "मिटा "नहीं सकता
ये "जिंदगी 'का "दीया "भी 'अजीब" "दीपक" है
जो "बुझ" गया तो कोई" फिर "जला" नहीं सकता
"बुराई" चीज ही ऐसी है "सब" में होती है
कोई "गुणो "को किसी के" चुरा "नहीं सकता
"सतगुरु" तो सभी के" दिलो" में "निवास" करते है
कोई किसी को "मगर "दिल "दिखा नहीं सकता
"सतगुरु" के "सिवा" भव "से "पार" कोई भी "लगा "नहीं सकता "l

अपनों से हमेशा जुड़े रहे

*आज एक नई सीख़ मिली*
जब अँगूर खरीदने बाजार गया ।
पूछा *"क्या भाव है?*
बोला : *"80 रूपये किलो ।"*
पास ही कुछ अलग-अलग टूटे हुए अंगूरों के दाने पडे थे ।
मैंने पूछा: *"क्या भाव है" इनका ?"*
वो बोला : *"30 रूपये किलो"*
मैंने पूछा : "इतना कम दाम क्यों..?
वो बोला : "साहब, हैं तो ये भी बहुत बढीया..!!
लेकिन ... *अपने गुच्छे से टूट गए हैं ।"*
मैं समझ गया कि ... *संगठन...समाज* और  *परिवार* से अलग होने पर हमारी कीमत......आधे से भी कम रह जाती है।

कृपया *अपनों* से हमेशा जुड़े रहे।

Sunday 25 September 2016

सात चीजें हमारा जीवन बर्बाद कर देती है:-

सात चीजें हमारा जीवन बर्बाद कर देती है:-
      बिना मेहनत के धन,
              बिना विवेक के सुख,
                     बिना सिध्दांतों के राजनीति,
       बिना चरित्र के ज्ञान,
               बिना नैतिकता के व्यापार,
                     बिना मानवता के विज्ञान,
                             बिना त्याग के पूजा

Represent yourself

"Always try to represent yourself 'happy',
Because ,
Initially, it becomes your 'look',
Gradually, it becomes your 'habit' &
finally, it becomes your 'personality'! "