Monday, 29 February 2016

शिष्टाचार कहता है....

शिष्टाचार कहता है.... कि,
किसी स्त्री से उसकी आयु,
और
किसी पुरूष से उसकी आय नहीं पूछनी चाहिये,

इसके पीछे शायद एक खूबसूरत बात छिपी हुई है... कि,

कोई भी स्त्री अपने लिये नहीं जीती,
और
कोई भी पुरूष अपने लिये नहीं कमाता...

Sunday, 21 February 2016

मिटटी दी ढेरी


कितने कमज़ोर हैं ये गुब्बारे
चन्द साँसों से फूल जाते हैं.....
और जरा सी बुलन्दी पाकर
अपनी हैसियत भूल जाते हैं.....

हम भी इन्ही गुबारो के जैसे हैं हम मिटटी के पुतले हैं और हमे भी चंद साँसे मिलती हैं  जीवन में,, और उन चंद सांसो में हम अपनी हैसियत भूल जाते हैं की हमे एक दिन फिर इसी मिटटी में मिटटी होना हैं !!

ना कर बन्दया मेरी मेरी ,
बन जाना हैं एक दिन मिटटी दी ढेरी


Tuesday, 16 February 2016

श्रेष्ठता

श्रेष्ठता जन्म से नही आती , गुणों के कारण निर्माण होती है..✅✅

-दूध- -दही- -छाछ- -घी-
सब एकही कुल के होते हुए भी ,"सब के मूल्य अलग अलग होते है.."

Saturday, 13 February 2016

प्रवचन देता है टन भर

चैन से जीने के लिए चार रोटी
और दो कपड़े काफ़ी हैं l

पर बेचैनी से जीने के लिए चार मोटर,
दो बंगले और तीन प्लॉट भी कम हैं !!

आदमी सुनता है मन भर

सुनने के बाद प्रवचन देता है टन भर
और खुद ग्रहण नही करता कण भर...

झाड़ू


झाड़ू ::::
जब तक एक सूत्र में बँधी होती है,तब तक _
वह "कचरा" साफ करती है।
लेकिन वही झाड़ू जब बिखर जाती है तो खुद
कचरा हो जाती है। इस लिये हमेशा परिवार से बंधे रहे ।बिखर कर कचरा न बने

उपवास अन्न का ही नहीं, बुरे विचारों का भी करो,
सरल बनो, स्मार्ट नहीं, क्योंकि हमें ईश्वर ने बनाया है, सैमसंग ने नहीं।।।

सदा मुस्कुराते रहिये

Thursday, 11 February 2016

मिट्टी से जुङे रहेंगे

अति सुन्दर कहा है एक कवि ने....
"मत शिक्षा दो इन बच्चों को चांद- सितारे छूने की।
चांद- सितारे छूने वाले छूमंतर हो जाएंगे।

अगर दे सको, शिक्षा दो तुम इन्हें चरण छू लेने की,

जो मिट्टी से जुङे रहेंगे, रिश्ते वही निभाएंगे।"

Wednesday, 10 February 2016

आभूषण

आज का सुविचार

सोने में जब जड़ कर हीरा,
आभूषण बन जाता है,
  वह आभूषण फिर सोने का नही,
            हीरे का कहलाता है ।

"काया इंसान की सोना है,
        और कर्म हीरा कहलाता है,
कर्मो के निखार से ही,
      मूल्य सोने का बढ़ जाता है.।

"कल का दिन किसने देखा है,
      आज का दिन हम खोएँ क्यों,
जिन घड़ियों में हँस सकते हैं,
      उन घड़ियों में रोएँ क्यों...?"